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खत

महादेव, आज मन किया आप को खत लिखुं। ह्रदय थोड़ा विचलित सा है। आपको हर वक्त महसूस तो कर सकती हूं, पर कभी-कभी लगता है आप बातें भी करते तो कितना अच्छा होता। आपने कहा था आप मुझसे हर वक्त बातें करते हैं, आपने कहा था आपके जवाब मेरे ही अंदर है, पर जब जल स्यंम स्थिर ना हो तो जवाब कहां से ढूंढे। सोचती हूं एक कदम बढ़ा दूं आपकी ओर। आप से मिलने चली जाऊं और छोड़ दूं सारे सवाल वहीं आपके पास और वहीं कहीं बैठ बन जाऊं वैरागी आपकी तरह। पर यह एक कदम अत्यधिक भारी है, उठाए उठते नहीं है।  संसार का मोह मै त्याग भी दूं, परन्तु यह संसार मुझे नहीं त्यागता। मेरे घर से आपके पहाड़ो तक की दूरी अधिक तो नहीं मात्र मेरे पलकों को झुकाने जितना ही तो है, परंतु इतनी ही दूरी मेरा पूरा जीवन मांगती है। मेरा मोह मुझे जाने की अनुमति नहीं देता परंतु आपका साथ मुझे अनिवार्य लगता है। मुझे लगता है यह यात्रा मोह के साथ ही पूरी करनी होगी और अगर मैं आपका हाथ थामे चलूं तो यात्रा सरल हो सकती है। आपको कहने की जरूरत तो नहीं परंतु फिर भी कहना चाहती हूं मैं भटक जाऊं तो भी हाथ थामे रखियेगा। आजकल आप की आवाज सुन पाना थोड़ा कठिन है इसलिए मेरे स